The Ultimate Guide To Shodashi

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The working day is observed with excellent reverence, as followers stop by temples, offer prayers, and engage in communal worship situations like darshans and jagratas.

It absolutely was right here also, that The good Shankaracharya himself set up the graphic of a stone Sri Yantra, Probably the most sacred geometrical symbols of Shakti. It can however be viewed now during the inner chamber in the temple.

ध्यानाद्यैरष्टभिश्च प्रशमितकलुषा योगिनः पर्णभक्षाः ।

The Sri Chakra can be a diagram formed from 9 triangles that encompass and emit out on the central point.

When the Devi (the Goddess) is worshipped in Shreecharka, it is said to generally be the best method of worship from the goddess. You will find 64 Charkas that Lord Shiva gave on the people, along with unique Mantras and Tantras. These got so which the people could give attention to attaining spiritual Positive aspects.

ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं  सौः

क्या आप ये प्रातः स्मरण मंत्र जानते हैं ? प्रातः वंदना करने की पूरी विधि

यदक्षरमहासूत्रप्रोतमेतज्जगत्त्रयम् ।

The Devi Mahatmyam, a sacred text, particulars her valiant fights within a series of mythological narratives. These battles are allegorical, symbolizing the spiritual ascent from ignorance to enlightenment, Using the Goddess serving as the embodiment of supreme understanding and electricity.

षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram

यह देवी अत्यंत सुन्दर रूप वाली सोलह वर्षीय युवती के रूप में विद्यमान हैं। जो तीनों लोकों (स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी) में सर्वाधिक सुन्दर, मनोहर, चिर यौवन वाली हैं। जो आज भी यौवनावस्था धारण किये हुए है, तथा सोलह कला से पूर्ण सम्पन्न है। सोलह अंक जोकि पूर्णतः का प्रतीक है। सोलह की संख्या में प्रत्येक तत्व पूर्ण माना जाता हैं।

ह्रीं ह्रीं ह्रीमित्यजस्रं हृदयसरसिजे भावयेऽहं भवानीम् ॥११॥

इति द्वादशभी श्लोकैः स्तवनं सर्वसिद्धिकृत् ।

यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय click here होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।

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